Ambedkar Jayanti: आज, 14 अप्रैल को, भारत के इतिहास में सबसे प्रमुख हस्तियों में से एक, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की 135वीं जयंती है। 1891 में इसी दिन मध्य प्रदेश के महू में जन्मे डॉ. अंबेडकर ने अपना जीवन अस्पृश्यता, सामाजिक असमानता और गरीबी से लड़ने के लिए समर्पित कर दिया। भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में उनका योगदान बेमिसाल है। यह विशेष दिन हमें उनकी अविश्वसनीय उपलब्धियों, शिक्षा के प्रति उनके समर्पण और शोषितों के अधिकारों के लिए उनके अथक संघर्ष की याद दिलाता है।
बाबा साहेब का प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
डॉ. भीमराव अंबेडकर महार जाति से संबंधित परिवार से थे, जिसे भारतीय समाज में अछूत माना जाता था। उनके पिता महू छावनी में ब्रिटिश सेना में सूबेदार के पद पर कार्यरत थे। अंबेडकर अपने परिवार में 14वें और आखिरी बच्चे थे और परिवार की सामाजिक स्थिति के बावजूद, उन्हें अपने भाई-बहनों के विपरीत, पढ़ने का अवसर दिया गया था। उनकी शादी 15 साल की उम्र में रमाबाई से हुई, जो उस समय केवल 9 साल की थीं। उनका निजी जीवन कठिनाइयों से भरा था, लेकिन शिक्षा के प्रति उनका दृढ़ संकल्प अटल रहा, जिससे वे 1907 में एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले दलित छात्र बन गए।
बाबा साहेब का ज्ञान और पुस्तकों के प्रति प्रेम
अंबेडकर की ज्ञान की प्यास कभी शांत नहीं होती थी। उन्हें किताबें पढ़ना बहुत पसंद था और उनके पास एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें उनकी मृत्यु के समय तक 35,000 से अधिक पुस्तकें थीं। पढ़ने के प्रति इस जुनून ने उन्हें अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान और कानून सहित विभिन्न विषयों में गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में मदद की। वास्तव में, 1912 में, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री हासिल की। अंबेडकर न केवल एक शिक्षाविद थे, बल्कि एक दूरदर्शी भी थे, विदेश से अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले पहले भारतीय थे। शिक्षा के प्रति उनका समर्पण और पुस्तकों के प्रति उनका प्रेम एक सम्मानित नेता और बुद्धिजीवी बनने में उनकी सफलता के लिए महत्वपूर्ण था।
अम्बेडकर की राजनीतिक और कानूनी विरासत
डॉ. अंबेडकर की राजनीतिक यात्रा भी उतनी ही उल्लेखनीय रही। उन्हें सार्वजनिक जल तक पहुँच के अधिकार के लिए लड़ने वाले पहले और एकमात्र सत्याग्रही के रूप में जाना जाता है। सामाजिक मुद्दों की उनकी गहरी समझ और उनके नेतृत्व गुणों के कारण उन्हें भारत के संविधान की मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में अंबेडकर ने देश के कानूनी ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1952 के आम चुनावों में बॉम्बे नॉर्थ सीट से हारने सहित कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, वे दो कार्यकालों तक राज्यसभा के सदस्य के रूप में काम करते रहे। भारत के कानूनी और सामाजिक सुधारों में उनके योगदान ने देश के इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी है।
बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन शिक्षा की शक्ति, लचीलेपन और सामाजिक न्याय के लिए अथक संघर्ष का प्रमाण है। उनकी विरासत भारतीयों की पीढ़ियों को समानता, न्याय और भेदभाव से मुक्त समाज के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित करती है। इस 135वीं जयंती पर, हम उनकी अविश्वसनीय उपलब्धियों को याद करते हैं और उनका सम्मान करते हैं जो भारत के भविष्य को आकार देना जारी रखती हैं।